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कार्य गोष्ठी शिक्षण विधि Teaching Method for( Reet)CTET,MPTET

 कार्य गोष्ठी शिक्षण विधि,कार्य पद एवं विशेषताये 

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सामूहिक विचार-विमर्श हेतु कार्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। 30-40 व्यक्ति निश्चित स्थान पर एकत्रित होते हैं तथा 4-5 दिन जमकर किसी विषय या समस्या पर विचार विमर्श करते हैं।

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कार्यगोष्ठी की प्रमुख विशेषता है कि जो व्यक्ति इसमें सम्मिलित होता है उसे कुछ कार्य करना, नितांत आवश्यक हो जाता है। उदाहरणार्थ- प्रदूषित पर्यावरण की कार्य गोष्ठी में सम्मिलित निश्चित रूप से वर्तमान में पर्यावरण के बिगड़ते स्वरूप के उपायों को सोचेंगे। जनसंख्या की कार्यगोष्ठी में जनसंख्या के नवीन उपायों को सोचेंगे।

संपूर्ण सत्र को दो सत्रों में बाँटा जाता है। प्रात:कालीन सत्र में सभी सैद्धांतिक पक्ष पर विचार-विमर्श कर, कार्य संपादन हेतु निर्णय लेते हैं साथ ही विद्वानों के संबंधित भाषण भी आयोजित किये जाते हैं।
सांयकालीन सत्र में छोटे-छोटे दलों का निर्माण किया जाकर सूक्ष्मता से विषय की गहराई में उतरते हुए अपना कार्य करते हैं। इन दलों के निर्माण में अभिरूचि का विशेष ध्यान रखा जाता है। कार्यगोष्ठी एक सृजनात्मक उद्देश्य है।

इस विधि द्वारा बालकों में उत्तरदायित्व, अनुशासन एवं स्वयं कार्यरत रहने की वृत्तियों का विकास होता है। कार्य गोष्ठी के कार्य पद :

समस्याओं का चयन- सभी सदस्य मिलकर एक सभा का निर्माण करते हैं। इस सभा में अध्यापक भी भाग लेता है। सभा के प्रत्येक सदस्य द्वारा लिखित या मौखिक रूप में अपने कार्य क्षेत्र की जटिल या अनुभव की गई समस्याएँ प्रस्तुत की जाती है।

समस्याओं का वर्गीकरण- साधारण सभा द्वारा चयन की गई समस्याओं को उचित रूप प्रदान करती है तथा उनके आंतरिक संबंध क्षेत्र के आधार पर समस्याओं का वर्गीकरण किया जाता है।
सामूहिक परिचर्चा अध्यापक के मार्गदर्शन में समस्याओं पर सामूहिक चर्चा की जाती है। समस्या के कारण, समाधान, कार्यप्रणाली तथा संदर्भ अध्ययन आदि पर चर्चा कर प्रकाश डाला जाता है।

वर्गवार कार्य- सभी सदस्य अपने वर्ग में एक ही अपनी रुचि की समस्या पर कार्य करते है। प्रत्येक सदस्य अपना कार्य अपने वर्ग के सम्मुख रखकर उसमें अपने वर्ग के साथियों के अनुकूल कार्य करता है। वर्ग का नेता संपादन का कार्य करता है।

कार्य को अंतिम रूप देना- संपादन के पश्चात् संपादित कार्य साधारण सभा में प्रस्तुत किया जाता है, जहाँ पय्यास विचार- विमर्श के पश्चात् संशोधन के साथ स्वीकार कर लिया जाता है।

कार्य का मूल्यांकन- अंत में साधारण सभा के द्वारा संपूर्ण कार्य का मूल्यांकन किया जाता है और भविष्य के लिए आवश्यक निर्णय लिये जाते हैं।

कार्य गोष्ठी की विशेषताएँ :


इस विधि को समाजीकृत अभिव्यक्ति का स्वरूप कहा जाता है।

छात्रों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति पनपती है।

विषय में सूझबूझ का विकास होता है।

सामाजिक एवं जीवन से संबंधित कौशल की प्राप्ति होती है। समूह एवं व्यक्तिगत कार्य दोनों का अनूठा मेल है ।

दिशा निर्धारण में सहयोग के कारण रूचि में वृद्धि होती है।

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