मस्तिष्क उद्वेलन ( ब्रेन स्टॉर्मिंग ) एवं जनक
मस्तिष्क उद्वेलन विधि के दोष
मस्तिष्क उद्वेलन विधि के जनक
मस्तिष्क उद्वेलन
मस्तिष्क उद्वेलन का अर्थ
मस्तिष्क उद्वेलन विधि के जनक कौन है
मस्तिष्क उद्वेलन विधि क्या है,
मस्तिष्क-उद्वेलन शैक्षिक जगत में एक नवीन नवाचाराभ्यास सम्प्रत्यय है। यह एक प्रकार की ऐसी व्यूह रचना जो मस्तिष्क में हलचल एवं झंझावत उत्पन्न करती है। इसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में काल्पनिक एवं सृजनशील भावनाओं का विकास करना है।
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इस व्यूह रचना की प्रमुख अवधारणा यह है कि किसी विषय- -वस्तु को सीखने या किसी समस्या को सुलझाने के लिए अकेले बैठकर सीखने या सोचने की अपेक्षा समूह में रहकर सीखने समूह में रहकर सोचने का प्रभाव कहीं अधिक व्यापक होता है यह व्यूह रचना समस्या पर सर्वथा केन्द्रित रहती है। इसीलिये इस शिक्षण-विधि को समस्या प्रधान माना जाता है।यह विधि मुख्यतया विद्यार्थियों को ज्ञान अत: क्रिया के द्वारा देने का समर्थन करती है। ज्ञानात्मक पक्ष का उच्चतम विकास इस विधि के द्वारा ही सम्भव है।
इस विधि के अन्तर्गत बालकों को सामूहिक रूप से एक समस्या दे दी जाती है और उनसे उस समस्या पर वाद विवाद करने को कहा जाता है। वाद-विवाद के दौरान जो विचार उनके मस्तिष्क में आये उनको स्वतंत्र रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे। यह आवश्यक नहीं है कि बालकों द्वारा प्रस्तुत सभी विचार पूर्ण रूप से सार्थक हों।
इस प्रकार इस प्रविधि में समूह की गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाता है। इस समूह के द्वारा ही उस समस्या का विश्लेषण, संश्लेषण तथा मूल्यांकन किया जाता है।
ब्रेन स्टॉर्मिंग इस सिद्धान्त पर आधारित है कि बालकों को अन्तः क्रिया द्वारा अधिक से अधिक ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। अत: इस प्रविधि का प्रयोग करते समय ऐसे साधनों का प्रयोग किया जाता है जो कि बालकों के मस्तिष्क को सामूहिक रूप से विचार-विमर्श के लिये गति प्रदान कर सकें। यह आव्यूह रचना (स्ट्रेटेजी) बालक के संज्ञानात्मक पक्ष के विकास में अधिक सहायक होती है। इसमें बालक का मस्तिष्क पूर्ण रूप से सक्रिय रहता है इससे उसे अपनी मानसिक शक्तियों को विकसित करने का अवसर मिलता है। इसके द्वारा बालक के भावनात्मक पक्ष का विकास सम्भव होता है. क्योंकि इसमें बालक एक समूह में रह कर समस्या के सन्दर्भ में विचार-विमर्श करते हैं। ब्रेन-स्टॉर्मिंग के द्वारा बालकों मेंआत्मविश्वास, वास्तविकता व सृजनात्मक जैसे गुणों का विकास होता है।
इस विधि में एक व्यक्ति प्रश्नाधिपति बन जाता है। वह शिक्षक भी हो सकता है या शिक्षक वर्ग के द्वारा छात्रों में से उनकी योग्यता के आधार पर चुना जाता है। वह (प्रश्नाधिपति) ऐसा अध्यापक हो जो अध्ययनशील, ज्ञानी, अपने विषय का पर्याप्त, आधुनिकतम तथा विविधतापूर्ण ज्ञान रखता हो, जिसमें उत्तर देने की कला हो तथा विचार प्रस्तुतीकरण की क्षमता रखता हो।
इस विधि से छात्रों का मानसिक उद्वेलन तो होता है लेकिन बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं क्योंकि हमारे भारतवर्ष में शिक्षा परीक्षा केन्द्रित अधिक है। इसके अलावा इसमें पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षण भी नहीं हो पाता है। फिर भी इसमें छात्रों में सजृनशीलता का विकास अधिक होता है।
इसके प्रयोग में कुछ बातें विशेष रूप से ध्यान में रखनी पड़ेगी जैसे समस्या प्रस्तुतीकरण के पश्चात् छात्रों को उस समस्या पर विचार करने हेतु पर्याप्त समय दिया जाये। आपस में एक दूसरे की आलोचना की अनुमति न दी जाये। सभी छात्रों को स्वतंत्र रूप से सोचने, चिन्तन व मनन करने हेतु प्रोत्साहित किया जाये। अपने विचारों को स्पष्ट रूप से बिना झिझक रखने पर बल दिया जाये।
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