आगमन- निगमन विधि हिंदी और पर्यावरण शिक्षण विधि
आगमन विधि ,aagman vidhi ke shikshan sutra
ऐसी शिक्षण पद्धति जिसमें उदाहरणों की सहायता से किसी सामान्य नियम या सूत्र की स्थापना की जाती है, आगमन विधि कहलाती है।आगमन विधि में विशेष उदाहरणों द्वारा छात्र स्वयं निरीक्षण,चिंतन करते हुए नियम निकालते हैं। इस विधि में स्थूल से सूक्ष्म की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर, ज्ञात से अज्ञात की ओर तथा विशिष्ट से सामान्य की ओर चला जाता है या अध्ययन को आगे बढ़ाया जाता है।
परिभाषाएँ-
जायसी के अनुसार, “आगमन विशेष दृष्टान्तों की सहायता सेसामान्य नियमों को विधिपूर्वक प्राप्त करने की क्रिया है।'
लैण्डन के अनुसार, "जब बालकों के समक्ष अनेक तथ्यों, ,उदाहरणों एवं वस्तुओं को प्रस्तुत किया जाता है तत्पश्चात्बालक स्वयं ही निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करते हैं, तब वह विधि आगमन विधि कहलाती है।"
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आगमन विधि के चरण या पद,
इस विधि से शिक्षण करवाते समय एक शिक्षक को निम्न चार चरणों से गुजरना पड़ता है-
1. उदाहरण (अध्यापक द्वारा उदाहरणों का प्रस्तुतीकरण)-एक ही प्रकार के उदाहरणों का चयन कर उन्हें छात्रों केसमक्ष प्रस्तुत करना।
2 निरीक्षण या तुलना - सभी उदाहरणों का अवलोकनकर उनकी तुलना करना तथा समानता देखकर परिणाम प्राप्त करना।
3.नियमीकरण या सामान्यीकरण - समानता के आधार पर नियम निकालना तथा ऐसे सिद्धान्त का निर्माण करना जिससे अभिष्ट सत्यापित हो सकें।
4 परीक्षण - निकाले गये नियम की सत्यता के लिए परीक्षण करना। कुछ अन्य उदाहरणों द्वारा अपने सिद्धान्त की. पुष्टि करना।
आगमन विधि के शिक्षण सूत्र -
- उदाहरण से नियम की ओर
- विशिष्ट से सामान्य की ओर
- स्थूल से सूक्ष्म की ओर
- ज्ञात से अज्ञात की ओर
- प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर
- मूर्त से अमूर्त की ओर
आगमन विधि के गुण
1 यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है इस विधि से प्राप्त ज्ञानस्थायी होता है।
2. यह विधि बालक की खोजी प्रवृत्ति को जन्म देती हैक्योंकि छात्र स्वयं नियम की खोज करते हैं
3 छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी एवं उपयुक्त विधि है
4 हिन्दी में व्याकरण शिक्षण के लिए यह उपयोगी विधि मानी जाती है
5. इसमें तर्क, विचार एवं निर्णय शक्ति का विकास होताइससे नियम, सूत्रों का निर्धारण एवं सामान्यीकरण की प्रक्रिया का ज्ञान।
6. सूक्ष्म बुद्धि एवं सूझ की वृद्धि के लिए उपयोगी है।
7 छात्रों की मानसिक शक्ति का विकास होता है।
आगमन विधि के दोष
1. इस विधि में समय बहुत अधिक लगता है।
2. अनुभवी एवं योग्य अध्यापक ही प्रयोग कर सकते हैं।
3. परिणाम पूर्णतया सत्य नहीं होते हैं।
4. बड़ी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है।
5. छात्र के सीखने की गति धीमी होती है तथा परिश्रम अधिक होता है।
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निगमन विधि
इसमें नियम या सूत्र बच्चों को पहले बता दिया जाता है फिर
उस नियम या सूत्र को विशेष उदाहरणों में प्रयोग कर उसकी सत्यता की पुष्टि की जाती है। यह आगमन विधि की बिल्कुल विपरीत विधि है।
लैंडन के अनुसार, “निगमन विधि द्वारा शिक्षण में पहलेपरिभाषा या नियम स्पष्ट किया जाता है। तत्पश्चात् उसके अर्थ की व्याख्या की जाती है और अन्त में तथ्यों का प्रयोग करके उसे पूर्ण रूप से स्पष्ट किया जाता है।'इस प्रणाली में छात्रों को नियम बता दिये जाते हैं और वे उन्हेंरट लेते हैं। इस विधि में छात्रों को स्वयं सीखने,निरीक्षण करने, चिंतन करने और नियमीकरण का कोई अवसर नहींमिलता। इसलिए शिक्षक इसे अमनोवैज्ञानिक विधि मानते हैं इस प्रणाली के दो रूप हैं - सूत्र प्रणाली और पुस्तक प्रणाली। सूत्र प्रणाली में व्याकरण की पुस्तकों से नियम रटाये जाते हैं। निगमन प्रणाली को अधिकतर शिक्षाशास्त्री अनुपयुक्त मानते हैं।
निगम विधि के चरण या पद-
निगमन विधि से अध्यापन करने पर एक शिक्षक को निम्, चार चरणों से गुजरना पड़ता है।
1.नियम या सिद्धान्त का ज्ञान - इस विधि में शिक्षक सर्वप्रथम छात्रों को नियम अथवा सिद्धान्त की जानकारी देता है
2. नियम या सिद्धान्त का प्रयोग- अध्यापक विभिन्न उदाहरण प्रस्तुत करता है और बालक इन उदाहरणों में सिद्धान्त या नियम का प्रयोग करते हैं।
3. आँकड़ों के आधार पर परीक्षण - विद्यार्थी भिन्न-भिन्नपरिस्थितियों में इन नियमों अथवा सिद्धान्तों का प्रयोग करते हैं और उनको सत्यता का परीक्षण करते हैं।
4 सत्यापन - विद्यार्थी अन्य उदाहरणों के आधार पर सिद्धान्त या नियम का पूर्ण सत्यापन करते हैं
निगमन विधि के शिक्षण सूत्र-
1. नियम से उदाहरण की ओर
2. अज्ञात से ज्ञात की ओर
3. सामान्य से विशिष्ट की ओर
4-प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर
5. सूक्ष्म से स्थूल की ओर
6. अमूर्त से मूर्त की ओर
निगमन विधि के गुण-
1. समय व श्रम कम लगता है, अतः पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण हो जाता है।
2 इस विधि से छात्रों की स्मरण शक्ति बढ़ जाती है।
3. यह विधि समस्याओं के हल में गति प्रदान करती है।
4-यह उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी है।
5 क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त होता है।
6 नियमों, सिद्धान्तों एवं सूत्रों की सत्यता की जाँच में आसानी।
7 अभ्यास कार्य शीघ्रता तथा आसानी से।
8 कार्य अत्यन्त सरल एवं सुविधाजनक।
9 मवीन समस्याओं का समाधान।
निगमन विधि की सीमायें या दोष
1. मानसिक शक्ति का विकास नहीं, रटने की आदत पड़ जाती है।
2. छात्र में आत्मनिर्भरता एवं आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होता है।
3 यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयुक्त नहीं है।
4. इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान अस्थायी होता है।
5. इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान अस्पष्ट एवं अस्थायी होता है।
याद रखे
जब उपर्युक्त दोनों प्रकार के विधियों का एक साथ प्रयोग किया जाता है तब वह आगमन निगमन विधि कहलाती है।यह विधि व्याकरण शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि मानी जाती है
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