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निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण गणित शिक्षण विधियाँ Math Teaching method

अधिगम से संबंधित निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण

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1-शिक्षक को चाहिये कि सबसे पहले विषय से सम्बंधित भूलों की एक सूची तैयार करे।
2. बालकों की भूलों को, त्रुटियों को मालूम करने के लिये वह उक्त भूलों पर एक प्रश्नपत्र तैयार करें और फिर लिखित उत्तर पाकर यह मालूम करे कि बालक किस-किस प्रकार की त्रुटियां कर रहे हैं।

3. शिक्षक को त्रुटियों के अनुसार बालकों का वर्गीकरण करना चाहिये।

4. त्रुटियों को भली प्रकार अलग-अलग बालकों को समझाने के बाद बार-बार जाँच करे।

उपचारात्मक कार्य

= शिक्षक को डॉक्टर की तरह मालूम करना चाहिये कि बालक को कोई रोग तो नहीं है। जैसे डॉक्टर रोग के ज्ञात होने पर उसका उपचार करता है उसी प्रकार शिक्षक को बालक द्वारा बार-बार गलती क्यों हो रही है व गलती किस प्रकार की है, यह ज्ञात होने पर उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिये।

1. गणित में प्रश्नपत्र हल करते समय जब भी बालक गलती करे तभी उसका तुरंत सुधार बालक के समक्ष रखते हुए समझाया जावे। गलती को टाला ना जाये।

2. बार-बार जाँच ही कमजोर व पिछड़े बालकों को आगे बढ़ने का इलाज है।

गणित में पिछड़ेपन का कारण और उसका उपचार


एक बालक स्कूल में गणित विषय की पढ़ाई में क्यों पिछड़ जाता है, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। सामान्यतः बालक इस विषय को पढ़ने से क्यों कतराते हैं? उन्हें बार-बार असफलता क्यों मिलती है? इन कारणों का विश्लेषण करके ही हम सही दिशा व उसके उपचार का मार्ग तय कर सकते हैं-

गणित में बालकों द्वारा सामान्य भूल करने के कारण


1. प्रश्न की भाषा को नहीं समझना।
2. लापरवाही से प्रश्न की भाषा को जल्दी-जल्दी पढ़ना या पढ़वाना।
3. बिना प्रश्न की भाषा पढ़वाये या पढ़े ही प्रश्न हल करना प्रारंभ करना।
4. गणितीय भाषा, चिन्ह, सूत्र, इकाई आदि के ज्ञान की कमी होना।

5. ज्ञात एवं अज्ञात सामग्री का विश्लेषण ना कर पाना।
6 प्रश्न हल करते समय जोड़, बाकी, गुणा, भाग करने में शीघ्रता करना।

7. संख्याओं की संकल्पना का अर्थात् पूर्ण प्रत्यय का ना बनना।

नैदानिक परीक्षण एवं उपचारात्मक शिक्षण


● नैदानिक परीक्षण (Diagnostic Test)- निदान से हमारा तात्पर्य है कि किसी रोगी के उपचार के लिए उसके रोग का निश्चय करना। गणित में निदान करने का उद्देश्य यह है कि छात्र कौनसे प्रत्ययों, नियमों, सूत्रों एवं सिद्धांतों को समझने में कठिनाई अनुभव करता है ? इस कमजोरी या कठिनाई का क्या कारण है? छात्र की शैक्षणिक दुर्बलता के संभावित कारणों का पता लगाने के लिए शिक्षक जो भी पद्धति अपनाएगा और उसे अपनाने के क्रम में जो भी कार्य सम्पन्न करेगा वही "नैदानिक परीक्षण" प्रक्रिया होगी।

बालकों के सीखने/अधिगम/ अनुभव संबंधी कमजोरियों के कारण तथा कठिनाइयों को हल करना/सामना करने का ज्ञान प्राप्त करने की क्रिया प्रक्रिया को "शैक्षणिक निदान" कहते हैं।
● निदानात्मक परीक्षाओं का कार्य उन तथ्यों का विश्लेषण भी करना होता है जिनके कारण छात्र को विषय में कठिनाई होती है। अत: हर कदम पर उसकी (बालक की) कठिनाइयों को समझना और दूर करना शिक्षक का पहला कार्य एवं कर्त्तव्य होता है।

वह परीक्षण जिससे किसी विषय विशेष, ईकाई विशेष में छात्र की त्रुटियों के बारे में जानकारी होती है, वह है

(1) निदानात्मक परीक्षण (2) उपचारात्मक परीक्षण

(3) उपलब्धि परीक्षण

(4) उपरोक्त सभी

Ans-(1)

निदानात्मक परीक्षण के बाद छात्र की कमजोरियों को दूर करने हेतु जो शिक्षण दिया जाता है, उसे कहते हैं

(1) निदानात्मक परीक्षण

(3) उपलब्धि परीक्षण

(2) उपचारात्मक शिक्षण

(4) उपरोक्त में से कोई नहीं ans-( 2 )

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