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अनुसंधान (ह्यूरिस्टिक ) विधि Evs Teaching method notes Reet exam

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जिस क्रिया से अध्यापक अपने शिक्षण को प्रभावी, रोचक, सरल एवं बोधगम्य बनाने का प्रयास करता है, को शिक्षण विधि कहते हैं। उद्देश्यानुरूप शिक्षण की निम्न प्रमुख विधियाँ प्रचलित हैं
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1. भ्रमण विधि

3. अनुसंधान विधि

2. वार्तालाप विधि

4. समस्या समाधान विधि

5. इकाई शिक्षण विधि 6. स्रोत संदर्भ विधि

7. कार्यगोष्ठी विधि

8. प्रायोजना विधि

9. निरीक्षण विधि 10. व्यक्तिशः शिक्षण विधि

11. मस्तिष्क उद्वेलन 12. अभिनयीकरण विधि

अनुसंधान (ह्यूरिस्टिक ) विधि


आर्मस्ट्रांग इस विधि के जन्मदाता थे। यह पद्धति स्वयं खोज करने या अपने आप सीखने की विधि है।

इसमें बालक को स्वयं तथ्यों का अध्ययन, अवलोकन और निरीक्षण करने का अवसर दिया जाता है और बालक से यह आशा की जाती है कि वह अपने प्रयास से सत्य को ज्ञात करें और नियम का निर्धारण करें।
इस प्रकार यह पद्धति विज्ञान शिक्षण के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होती है।

यह प्रणाली तर्क, निर्णय तथा चिंतन आदि का विकास कर छात्रों के मानसिक विकास में विशेष योगदान देती है।

इसमें बालक करके सीखने के सिद्धांत का प्रयोग करता है।

इस विधि को अनेकानेक नामों से भी जाना जाता है यथा- खोज विधि, ह्यूरिस्टिक विधि अथवा प्रयोगशाला विधि, स्वन्वेषण विधि।

अनुसंधान विधि के कार्य पद :


निरीक्षण- विषय वस्तु की परिस्थितियों का निरीक्षण।

तुलना- विषय वस्तु की परिस्थितियों से तुलना।

प्रयोग- निरीक्षण, तुलना के आधार पर विचारों का प्रयोग।

प्रदर्शन- प्रयोग का।

सामान्यीकरण- प्रयोग द्वारा उत्पन्न तथ्यों का परिणाम के रूप में सिद्धांत निर्मित करना।

प्रमाणीकरण- पुन: प्रयोग द्वारा। इस विधि की दो प्रणालियाँ प्रचलित हैं

1. परम्परागत प्रणाली, 2. नवीन प्रणाली।
परम्परागत प्रणाली :-

इस प्रणाली में बालक पाठ्य पुस्तकों के अध्ययन का सहारा लेकर, विषय वस्तु से संबंधित तथ्यों एवं परिणामों की जानकारी प्राप्त करता है। इसके पश्चात् अध्यापक स्वयं संबंधित विषय वस्तु को प्रयोग द्वारा प्रदर्शित करता है और ज्ञान को स्पष्ट करता है।

नवीन प्रणाली

यह प्रणाली परम्परागत प्रणाली से सर्वथा भिन्न है । शिक्षक कक्षा में छात्रों से निरीक्षण, तुलना और प्रयोग करवाकर परिणाम निकलवाता है।

इसमें परिणाम या निष्कर्षों को पूर्व में प्रस्तुत नहीं किया जाता अपितु शिक्षार्थी स्वयं प्रयोग, तुलना और निरीक्षण द्वारा परिणाम पर पहुँचने की चेष्टा करता है। अध्यापक का कार्य पूरक कथनों द्वारा स्पष्टीकरण एवं पुष्टि कर, सही दिशा-निर्देश देना है। सामाजिक विज्ञान शिक्षण के निर्देशित अध्ययन तथा एसाइनमेंट सिस्टम के आधार पर कार्य करने हेतु कहा जाना उपयुक्त प्रतीत होगा।

अनुसंधान विधि की विशेषताएँ :-

शोध एवं खोज के प्रति रुचि, जिज्ञासा उत्पन्न करना।

वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं के कार्य की गहनता को समझना तथा शिक्षार्थियों के मन में उनके प्रति सम्मान एवं प्रशंसा की भावना विकसित होती है।
अंतर्दृष्टि भी पैनी होती है।

उच्च अध्ययन के प्रति रुचि, उत्साह तथा जिज्ञासा उत्पना होती है। बालक स्वाध्याय की ओर अग्रसर होता है।

अधिगम अधिक स्पष्ट एवं स्थायी होती है।

अध्यापक का स्थान :-

अनुसंधान विधि में अध्यापक का स्थान पथ-प्रदर्शक का होता है। वह बालकों के सामने समस्या प्रस्तुत करता है, उनके प्रश्नों का उत्तर देता है तथा उन्हें आवश्यक स्रोतों से परिचित कराता है। परिस्टिक प्रणाली के अध्यापक को अत्यंत निपुण, जागरूक तथा निरीक्षण करने वाला होना चाहिए तथा उसे अपने अंदर वैज्ञानिक प्रवृत्तियों का विकास करना चाहिए।

अनुसंधान विधि की सीमाएँ

इस विधि द्वारा शिक्षण कार्य धीमा हो जाता है जिससे पाठ्यक्रम को पूरा करने में कठिनाई बनी रहती है।

परिणामों पर पहुँचने में शिक्षार्थी को अधिक समय लगता है।

शिक्षक का धैर्य भी समाप्त हो जाता है। वह स्वयं छात्रों को बताकर अपने कार्य की इतिश्री करने लगता है। इस विधि का उपयोग खर्चीला है, क्योंकि प्रयोग के उपकरण एवं संदर्भ पुस्तकें अत्यंत महँगी पड़ती हैं।

30 से 40 मिनट का कालांश का समय पर्याप्त नहीं रहता है। अत: लम्बे कालांशों की आवश्यकता पड़ती है।

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