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THEORIES OF (INTELLIGENCE )बुद्धि के सिद्धान्त एवम् विशेषताए

 बुद्धि की विशेषताएँ(CHARACTERISTICS OF INTELLIGENCE)


बुद्धि एक सामान्य योग्यता है। इस योग्यता से व्यक्ति अपने को तथा दूसरे को समझता है। सच यह है कि सामाजिक तथा वैयक्तिक परिवेश में अन्त:क्रियात्मक गतिशीलता तथा क्षमता का नाम बुद्धि है। बुद्धि की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

1. बुद्धि, व्यक्ति की जन्मजात शक्ति है।

2. बुद्धि, व्यक्ति को अमूर्त चिन्तन की योग्यता प्रदान करती है। 3. बुद्धि, व्यक्ति को विभिन्न बातों को सीखने में सहायता देती है।

4. बुद्धि, व्यक्ति को अपने गत अनुभवों से लाभ उठाने की क्षमता देती है।
১. बुद्धि, व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों और जटिल समस्याओं को सरल बनाती है। 6. बुद्धि, व्यक्ति को नवीन परिस्थितियों से सामंजस्य करने का गुण प्रदान करती है।

7. बुद्धि, व्यक्ति को भले और चुरे, सत्य और असत्य, नैतिक और अनैतिक कार्यों में अन्तर करने की योग्यता देती है।

8. बुद्धि पर वंशानुक्रम और वातावरण का प्रभाव पड़ता है।

9. प्रिटर (Prineer) के अनुसार बुद्धि का विकास जन्म से लेकर किशोरावस्था के मध्यकाल तक होता है। 10. कोल एवं बूस (Cole and Bruce) के अनुसार-लिंग-भेद के कारण बालको

और बालिकाओं को बुद्धि में बहुत ही कम अन्तर होता है।
Theories of intelligence psychology


बुद्धि के प्रकार (KINDS OF INTELLIGENCE)

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बुद्धि का विभाजन करना एक कठिन कार्य है। बुद्धि तो वह क्षमता है जिसका उपयोग व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों तथा परिवेश में करता है। इस आधार पर बुद्धि का वर्गीकरण विद्वानों ने इस प्रकार किया है

1. गैरिट (Garrett) ने तीन प्रकार की बुद्धि का उल्लेख किया है; यथा


(a) मूर्त बुद्धि (Concretc Intelligence)-इस बुद्धि को 'गामक या 'यांत्रिक बुद्धि' (Motor of Mechanical Intelligence) भी कहते हैं। इसका सम्बन्ध यन्त्रों और मशीनों से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह यन्त्रों और मशीनों के कार्य में विशेष रुचि लेता है। अतः इस बुद्धि के व्यक्ति अच्छे कारीगर, मैकेनिक, इंजीनियर औद्योगिक कार्यकर्ता आदि होते हैं।

(2) अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence)-इस बुद्धि का सम्बन्ध पुस्तकीय ज्ञान से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह ज्ञान का अर्जन करने में विशेष रूचि लेता है। अत: इस बुद्धि के व्यक्ति अच्छे वकील, डाक्टर, दार्शनिक, चित्रकार, साहित्यकार आदि होते हैं।

(3) सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) -इस बुद्धि का सम्बन्ध व्यक्तिगत और सामाजिक कार्यों से होता है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह मिलनसार, सामाजिक कारयों में रुचि लेने वाला और मानव-सम्बन्ध के ज्ञान से परिपूर्ण होता है। अत: इस बुद्धि के व्यक्ति अच्छे मन्त्री, व्यवसायी, कूटनीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकत्ता होते हैं।

2. थानंडाइक (Thorndike) ने बुद्धि का वर्गीकरण इस प्रकार किया है


(1) अमूर्त (Abstract) बुद्धि-अमूर्त बुद्धि ज्ञानोपार्जन के लिये प्रयोग की जाती है। शब्दों, प्रतीकों, समस्या समाधान आदि के रूप में अमूतं बुद्धि का प्रयोग किया जाता है। (2) सामाजिक (Social) बुद्धि-इस बुद्धि के द्वारा व्यक्ति समाज में समायोजन करता

है। विभिन्न व्यवसायों में सफलता प्राप्त करता है। (3) यांत्रिक (Motor) बुद्धि-इस बुद्धि को सहायता से व्यक्ति यंत्रों तथा भौतिक वस्तुओं का परिचालन करता है। ऐसे व्यक्ति इंजीनियर, मैकेनिक, तकनीशियन आदि होते है ।

बुद्धि के सिद्धान्त  (THEORIES OF INTELLIGENCE)


बुद्धि क्या है ? वह किन तत्वों से निर्मित है ? वह किस प्रकार कार्य करतो है ? इर प्रश्नों का उत्तर खोजने का अनेक मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास किया है। फलस्वरूप, उन्होंने बुद्धिअनेक सिद्धान्त प्रतिपादित किये है, जो उसके स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। इनमें से प्रमुख सिद्धान्त अधोलिखित हैं

1. एक-खण्ड का सिद्धान्त (Unifactor Theory)

2 दो-खण्ड का सिद्धान्त (Two-Factor Theory) 
3. तीन-खण्ड का सिद्धान्त (Three-Factor Theory)
4. बहु-खण्ड का सिद्धान्त (Muliti-Eactor Theory)
 5.मात्रा-सिद्धान्त (Quantity Theory)
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1. एक-खण्ड का सिद्धान्त (Unifactor Theory)-

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक बिने, टर्मन (Binet. Terman) और स्टर्न (Stern) हैं उन्होंने बुद्धि को एक अखण्ड और अविभाज्य इकाई माना है। उनका मत है कि व्यक्ति की विभिन्न मानसिक योग्यताएँ एक इकाई के रूप में कार्य करती हैं। योग्यताओं की विभिन्न परीक्षाओं द्वारा यह मत असत्य सिद्ध कर दिया है

2 दो-खण्ड का सिद्धान्त (Two Factor Theory)-

इस सिद्धान्त का प्रतिपादक स्पीयरमैन (Sperman) है। उसके अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति में दो प्रकार की बुद्धि होती है-सामान्य और विशिष्ट (General and Specific)। दूसरे शब्दों में, बुद्धि के दो खण्ड या तत्व होते है-1) सामान्य योग्यता या सामान्य तत्व, और (2) विशिष्ट योग्यता या विशिष्ट तत्व। (i) सामान्य योग्यता या सामान्य तत्व (General Ability or Factor)- स्पीयरमैन (Spearman) ने सामान्य योग्यता को विशिष्ट योग्यताओं से अधिक महत्वपूर्ण माना है। उसके अनुसार, सामान्य योग्यता सब व्यक्तियों में कम या अधिक मात्रा में मिलती है। इसको मुख्य विशेषताएँ हैं-(1) यह योग्यता, व्यक्ति में जन्मजात होती है। (2) यह उसमें सदैव एक-सी रहती है। (3) यह उसके सब मानसिक कार्यों में प्रयोग की जाती है। (4) यह प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न होती है। (5) यह जिस व्यक्ति में जितनी अधिक होती है, उतना हो अधिक वह सफल होता है। (6) यह भाषा, विज्ञान, दर्शन आदि में सामान्य सफलता प्रदान करती है।

(1) विशिष्ट योग्यताएँ या विशिष्ट तत्व (Specific Ability or "S" Factor)-इन योग्यताओं का सम्बन्ध व्यक्ति के विशिष्ट कार्यों से होता है। इनकी मुख्य विशेषताएँ है--(1) ये योग्यताएँ अर्जित की जा सकती हैं। (2) योग्यताएँ अनेक और एक-दूसरे से स्वतन्त्र होती हैं। (3) विभिन्न योग्यताओं का सम्बन्ध विभिन्न कुशल कार्यों से होता है। (4) ये योग्यताएँ विभिन्न व्यक्तियों में विभिन्न और अलग-अलग मात्रा में होती हैं। (5) जिस व्यक्ति में जो योग्यता अधिक होती है, उसी से सम्बन्धित कुशलता में वह विशेष सफलता प्राप्त करता है। (6) ये योग्यताएँ भाषा, विज्ञान, दर्शन आदि में विशेष सफलता प्रदान करती हैं।

स्पीयरमैन (Spcarman) के इस सिद्धान्त को आधुनिक मनोवैज्ञानिक स्वीकार नहीं करते हैं। इसका कारण बताते हुए मन (Munn, p. 94) ने लिखा है-"मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि स्पीयरमैन जिसे सामान्य योग्यता कहता है, उसे अनेक योग्यताओं में विभाजित किया जा सकता है।" 3. तीन-खण्ड का सिद्धान्त (Three Factor Theory)-यह सिद्धान्त भी स्पीयरमैन

(Spearman) के नाम से सम्बन्धित है। 'दो-खण्ड का सिद्धान्त' प्रतिपादित करने के बाद उसने

बुद्धि का एक खण्ड और बताया। उसने इसका नाम "सामूहिक खण्ड या तत्व' (Group

Factor) रखा। उसने इस खण्ड में ऐसी योग्यताओं को स्थान दिया, जो सामान्य योग्यता'

से श्रेष्ठ और विशिष्ट योग्यताओं से निम्न होने के कारण उनके मध्य का स्थान ग्रहण करती है
4. बहुखण्ड का सिद्धान्त (Multifactor Theory)-स्पीयरमैन (Spearman) के बुद्धि के सिद्धान्त पर आगे कार्य करके मनोवैज्ञानिकों ने 'बहुखण्ड का सिद्धान्त' प्रतिपादित किया। इन मनोवैज्ञानिकों में कैली (Kelly) और थर्स्टन (Thurstone) के नाम उल्लेखनीयहै\
(1) कैली (Kelly) के अनुसार बुद्धि के खण्ड-कैली (Kelly) ने अपनी पुस्तक "Ciwasroads in the Mind of Man " में बुद्धि को निम्नलिखित 9 खण्डों या योग्यताओं का

समूह बताया है

(1) रुचि (Interest) (ii) गामक योग्यता (Motor Ability)

(it) सामाजिक योग्यता (Social Ability)

(iv) सांख्यिक योग्यता (Numerical Ability)
 (v) शाब्दिक योग्यता (Verbal Ability)
(vi) शारीरिक योग्यता (Physical Ability)
 (vii) संगीतात्मक योग्यता (Musical Ability)
(viii) यांत्रिक योग्यता (Mechanical Ability)
 (ix) स्थान-सम्बन्धी विचार योग्यता (Ability to deal with Spatial Relations)
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(2) थर्स्टन (Thurstone) के अनुसार बुद्धि के खण्ड

-थर्स्टन (Thurstone) ने अपनी पुस्तक "Primary Mental Abilities" में बुद्धि के 13 खण्ड या तत्व बताये हैं। दूसरे बताया है, जिनमें से निम्नांकित

शब्दों में, उसने बुद्धि को 13 मानसिक योग्यताओं का समूह को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है
(i) स्मृति (Memory)

(ii) प्रत्यक्षीकरण की योग्यता (Perceptual Ability)

(iii) सांख्यिकी योग्यता (Numerical Ability)

(iv) शाब्दिक योग्यता ( Verbal Ability) (v) तार्किक योग्यता (Logical Ability)

(vi) निगमनात्मक योग्यता (Deductive Ability)

(vii) आगमनात्मक योग्यता (Inductive Ability) (vii) स्थान-सम्बन्धी योग्यता (Spatial Ability)

(ix) समस्या-समाधान की योग्यता (Problem-Solving Ability)

5. मात्रा सिद्धान्त (Quantity Theory)-इस सिद्धान्त का प्रतिपादक थार्नडाइक hormdike) है।

 वह 'सामान्य मानसिक योग्यता' के समान किसी तत्व को स्वीकार नहीं करता है। यानी बाइक (Throndike) का मत है-"मस्तिष्क का गुण स्नायु तन्तुओं की मात्रा में निर्भर रहता है।" (The quality of intellect depends upon the quantity of connections of neural connectors. ") इसका अभिप्राय यह है कि बुद्धि उतनी ही अधिक अच्छी होती है, जितने अधिक मस्तिष्क और स्नायुमण्डल के सम्बन्ध होते हैं, क्योंकि व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के आधार यही सम्बन्ध है।

थार्नडाइक CThrondike) ने अपने सिद्धान्त को 'उड्दीपक प्रतिक्रिया' (Stimulus Response) के आधार पर सिद्ध किया है। उसका मत है कि जिन अनुभवों का उद्दीपक प्रतिक्रियाओं से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, वे भविष्य में उसी प्रकार की समस्याओं का समाधान अधिक सरल बना देते हैं।

चार्नडाइक (Thorndike) के सिद्धान्त की दो कारणों से कटु आलोचना की गई है। पहला कारण यह है कि यह सिद्धान्त, मस्तिष्क और स्नायु-मण्डल के सम्बन्ध पर बहुत अधिक बल देता है। दूसरे कारण को क्रो एवं क्रो (Crow and Crow, p. 148) के इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है-"यह सिद्धान्त मस्तिष्क की सम्पूर्ण रचना के लचीलेपन को कोई स्थान नहीं देता है।"
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