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Project method (परियोजना विधि) : रीट लेवल 1-2 पर्यावरण और हिंदी शिक्षण विधि

 

Project method (परियोजना विधि) रीट लेवल 1-2 हिंदी और पर्यावरण शिक्षण विधि

Project method (परियोजना विधि) : रीट लेवल 1-2  पर्यावरण और हिंदी शिक्षण विधि

प्रायोजना विधि मूलत जॉन ड्यूवी की विचार है किलपैट्रिक ने ड्यूवी की विचारधारा पर प्रोजेक्ट (परियोजना) विधि का प्रतिपादन किया। CTET AND REET EXAM

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Project method (परियोजना विधि)




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प्रायोजना विधि निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित है-

1 रोचकता- बालक अपने  प्रयोजना एवं कार्य को खुद ही सुनते हैं

2 प्रायोजना उद्देश्य - जो समस्या बालकों को हल करने के लिए दी जाती है वह उद्देश्यपूर्ण होती है।

3 क्रियाशीलता - बालक में जिज्ञासा, तर्क शक्ति आदि की प्रवृतियां पाई जाती है इसीलिए उसे हर किसी प्रकार से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है प्रोजेक्ट विधि में बालक एवं शिक्षक क्रियाशील रहते हैं। इससे स्थाई एवं उपयोगी शिक्षा प्राप्त होती है।

4 वास्तविकता या यथार्थता- प्रोजेक्ट के द्वारा जो भी कार्य कराया जाता है वह वास्तविक परिस्थितियों के अनुकूल होता है जिसके फलस्वरूप बालकों को प्रेरणा मिलती है। अत: शिक्षा को बालकों के जीवन से जोड़ा जाता है।

5. सामाजिकता- बालको में सामाजिक रूप से एक अवसर प्रदान किए जाते हैं ताकि सामाजिकता का गुण विकसित हो सके। जीवन का अनुभव हो सके तथा उनके अन्दर सहयोग, सद्भावना, प्रेम और सहकारिता जैसे सामाजिक गुणों का विकास हो।

6. उपयोगिता- उपयोगिता वाले कार्यों में ही बालक की रूचि उत्पन्न होती है। रूचि ही किसी प्रायोजना का मनोवैज्ञानिक तत्व है। अत: प्रोजेक्ट से बालक जो कुछ भी सीखता है, करके सीखता है। यह व्यावहारिकता ही सामाजिक उपयोगिता का सबसे बड़ा आधार है। तत्कालीन आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले प्रोजेक्ट छात्रों के लिए विशेष रूचिकर होते हैं। ड्यूवी ने सामाजिक उपयोगिता को ही शिक्षा का लक्ष्य माना है।

रीट हिंदी/पर्यावरण शिक्षण विधि- प्रोजेक्ट विधि

Project teaching method part of syllabus hindi and  EVS subject for reet exam. Project method is used mostly in EVS.

प्रायोजना विधि के सोपान या चरण या घटक-

सफलता पूर्वक परियोजना चलाने के लिए प्रोजेक्ट में निम चरण पद होने चाहिए

1 परिस्थिति उत्पन्न करना- बालक परियोजना कार्य कार्य करने के लिए स्थितियां अनुकूल बनाएगा प्रोजेक्ट में छात्रों की रूचि और आकर्षण के कारण वे उस सम्बन्ध में शिक्षक से विचार- विमर्श करेंगे। अध्यापक बालकों को भिन्न-भिन्न मेलों,प्रदर्शनियों, दर्शनीय स्थलों इत्यादि पर ले जाएगा तथा त्योहारों और अन्य सामाजिक गतिविधियों का परिचय कराएगा।

2 प्रायोजना कार्य का चुनावशिक्षक बालको को परियोजना कार्य से बालकों को परिचित करा देना चाहिए। शिक्षक बालकों को प्रोजेक्ट में मार्ग-प्रदर्शन करेगा। योजना के चुनने की स्वीकृति तथा निर्णय छात्रों के द्वारा ही होनी चाहिए।

3 कार्यक्रम बनाना- 

योजना निश्चित हो जाने के पश्चात् उसको पूरा करने के लिए कार्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए। वास्तविक तथा स्वाभाविक परिस्थितियों में पूरा होने वाला कार्यक्रम विचार-विमर्श के द्वारा निश्चित किया जा सकता है। प्रत्येक छात्र को अपनी योग्यता के अनुसार कार्य मिलता है और उस योजना को सब मिलकर ही पूरा करते हैं।

4. कार्यक्रम क्रियान्वित करना- कार्यक्रम बन जाने के पश्चात् प्रत्येक बालक अपना कार्य क्रिया द्वारा सीखना' के आधार पर स्वयं करता है। सभी छात्र अपनी योग्यता और सामर्थ्य के अनुसार अपने-अपने उत्तरदायित्व को निभाते हैं।  शिक्षक को उनके कार्य में सहायता, निरीक्षण, प्रोत्साहन तथा आदेश भी देना चाहिए। छात्र को अनेक कार्य करने पड़ते हैं, जैसे - लिखना, पढ़ना आदि। छात्रों में स्व आलोचना की आदत डालनी चाहिए।

5 कार्य का मूल्यांकन करना -प्रयोजना कार्य पूरा करने के बाद में बालक खुद मूल्यांकन करें ।योजना कार्यक्रम के अनुसार इस पर सामूहिक तौर से विचार किया है और तभी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। प्रोजेक्ट कार्य पूर्ण होने पर अध्यापक की सहायता से मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

6. कार्य का लेखा-जोखा रखना- प्रोजेक्ट के चुनाव से लेकर पूरा होने तक सभी क्रिया-कलापों का पूरा ब्यौरा रखा जाता है। वे अपने कार्य के बारे में कठिनाइयाँ व आलोचना आदि पंजिका में अंकित करते हैं। वे किये गये कार्य, उनकी विधियाँ, उपकरण, पुस्तकों आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं। प्रायोजना विधि का महत्व - प्रायोजना विधि का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।

1. प्रत्यक्ष अनुभव होना-

अनुभव प्राप्त होता है। अर्जित ज्ञान स्थायी बनता है।

2 करके सीखना -

बालक स्वयं 'करके सीखते हैं, जिससे छात्रों में विषय के प्रति अधिक रूचि, उत्साह और आत्म-विश्वास उत्पन्न होता है।

3 मनोवैज्ञानिकता-

छात्रों में स्व सीखने व जिज्ञासा की आदत हो जानी चाहिए

4. प्रयोगात्मकता

योजना विधि द्वारा छात्र स्वयं प्रयोग करके, उपकरणों आदि के द्वारा मापन के आधार पर हिन्दी के तथ्यों, सम्प्रत्ययों, उच्चारण, वर्तनी अशुद्धियों व परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

5. उपयोगिता या व्यावहारिकता -

इस विधि द्वारा सीखे हुए ज्ञान और तथ्यों तथा नियमों को दैनिक जीवन की समस्याओं में उपयोग कर सकता है। उपयोगिता या व्यावहारिकता से प्राप्त ज्ञान का अन्य स्थितियों में और अन्य समस्याओं में उपयोग करना जानता है।

6 स्वाध्याय की प्रवृत्ति - 

छात्रों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति विकसित होती है।

7. अधिगम में सरलता -

उनका अधिगम सरल, सुबोध तथा

रोचक होता है।

रीट हिंदी/पर्यावरण शिक्षण विधियां (hindi/EVS teaching method for reet)

प्रायोजना विधि के गुण/विशेषताएँ -

1. मनोवैज्ञानिकता- प्रोजेक्ट विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित होती है। बालकों की स्वाभाविक रूचियों, मनोवृत्तियों तथा चेष्टाओं का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है। उनकी जिज्ञासा संग्रह - रचनात्मकता एवं अन्वेषणात्मक प्रवृत्तियों का पोषण होता है। अनुभव से सीखने का अवसर

मिलता है।

2. चरित्र-निर्माण में सहायक- प्रोजेक्ट के द्वारा बालकों के सर्वांगीण विकास में पर्याप्त सहायता. मिलती है।उनमें आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, सामाजिक गुणों, सौन्दर्यानुभूति, नेतृत्व तथा भावात्मक स्थिरता आदि का विकास होता है 

3. प्रयोगात्मक एवं व्यावहारिक विधि- इसमें छात्र व अध्यापक दोनों क्रियाशील रहते हैं।

इस विधि द्वारा बालक अपने वास्तविक जीवन की समस्याओं को सुलझाने का प्रशिक्षण लेते हैं। यह विधि करके सीखना' नियम पर आधारित है। इससे बालक की सृजनात्मक तथा क्रियात्मक प्रवृत्तियों का विकास होता है।

4. पिछड़े बालकों की समस्या - प्रोजेक्ट विधि में पिछड़े बालकों की भी अभिव्यक्ति के अनेक अवसर प्रदान किये जाते हैं। स्वावलम्बन की भावना सुदृढ़ होती है।

5. तर्क, निर्णय, चिन्तन, अन्वेषण शक्ति का विकास- इस विधि द्वारा बालकों में निरीक्षण,

तर्क, चिन्तन, अन्वेषण तथा निर्णय लेने की शक्ति का विकास होता है।

6 प्रजातन्त्रवादी भावना का विकास- बालक स्वतंत्रता से कार्य करते हैं। बालकों में उत्तरदायित्व की भावना, धैर्य, सहिष्णुता, कर्त्तव्यनिष्ठा, पारस्परिक प्रेम एवं सहयोग की भावना आदि सामाजिक गुणों का विकास  होता है।

7. स्थायी एवं स्पष्ट ज्ञान - इस विधि में रटने का महत्व नहीं है। विद्यार्थी सतत् सक्रिय होकर पूरी लगन और प्रत्यक्ष अनुभवों एवं क्रियाओं द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं। इससे अर्जित ज्ञान व्यवहार या कौशलों से. अधिक स्थायी होते हैं

परियोजना विधि रीट लेवल 1 और 2 (reet teaching method)

प्रायोजना विधि के दोष/सीमाएँ-

1 इस विधि के प्रयोग में अधिक व्यय करना पड़ता है क्योंकि विभिन्न प्रकार की सामग्री तथा यंत्रों की आवश्यकता पड़ती है।

2 इस विधि से यदि शिक्षा दी जाये तो पूरा पाठ्यक्रम एक वर्ष की अवधि में पूरा नहीं किया जा सकता। इसका प्रयोग कुछ प्रकरण में ही सम्भव हो पाता है।

3. प्रोजेक्ट विधि के आधार पर उचित पाठ्य-पुस्तकें नहीं मिलती ।

4 विद्यार्थियों की संख्या अधिक होने पर उसके अनुपात में योग्य , प्रशिक्षित एवं अनुभवी अध्यापक नहीं मिलते हैं। शिक्षण में छात्रों पर अधिक भार पड़ जाता है।

5 अध्यापक को मनोवैज्ञानिक रूप से उनकी योग्यताओं, आवश्यकताओं, क्षमताओं एवं रूचियों इत्यादि से परिचित होना पड़ता है तथा समय-समय पर मार्ग-निर्देशन एवं निरीक्षण भी करना पड़ता है। इतना कार्य एक अध्यापक द्वारा सम्भव नहीं होता।

6. इसमें क्रमबद्ध अध्ययन नहीं रह पाता है

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